आगरा। परम पूज्य शांतिदूत धर्मरत्न श्री देवकीनंदन ठाकुर जी महाराज के पावन सानिध्य में दिनांक- 14 से 20 अप्रैल तक बिहारीपुर, कुबेरपुर, आगरा, उत्तर प्रदेश में श्रीमद् भागवत कथा का आयोजन किया जा रहा है। 

आज श्रीमद् भागवत कथा के प्रथम दिवस की शुरूआत विश्व शांति के लिए प्रार्थना के साथ की गई। जिसके बाद पूज्य महाराज श्री ने सभी भक्तगणों को "श्री राधे गोपाल भजमन श्री राधे" भजन श्रवण कराया।

श्रीमद् भागवत आज गली गली में हो रही है और काफी लोग यह कहते हैं कि हम तो कथा बहुत सुनते हैं लेकिन कथा सुनने के बाद अगर तुम्हारी पिपाशा बुझ जाए और कहे कि तृप्त हो गए इसका मतलब आपने कथा सुनी ही नहीं आप तो सिर्फ जाकर बैठ गए थे कथा सुनने का मतलब है जो सच्चे मन से कथा सुनता है उसका मन भगवान का हो जाता है। 
भगवान के सिवा तुम्हारे सुख-दुख को नष्ट करने की क्षमता किसी में नहीं है आज लोग 2007 वाले नहीं रहे और आगे 2030 में 2023 वाले भी नहीं रहेंगे यह याद रखना जिस निष्ठा के साथ हमें भगवान और भगवान के साथ अपना व्यवहार करना चाहिए वह निष्ठा अब हम लोगों की उतनी मजबूत नहीं है। 

आज के मनुष्य का मन नोटों में लगा है और जितना मन नोटों में है उतना मन अभी नंदलाल में नहीं है और कथा का काम ही है कि आपके मन को नंदलाल से जोड़ना अगर आपने ईमानदारी से एक बार भी कथा सुन ली तो आपका मन नंदलाल से नहीं हटेगा और जब तक नंदलाल में मन न लग जाए मोहन में न लग जाए प्रियाकांत जू में न लग जाए तब तक बार-बार कथा सुनो। 


पूज्य श्री देवकीनंदन ठाकुर जी महाराज ने कथा का वृतांत सुनाते हुए कहा की राम कथा हमें जीना सिखाती है और भागवत कथा हमें मरना सिखाती है हमारा मृत्यु सुधर जाए तो हमारा कल्याण होने से कोई नहीं रोक सकता कोई भी नहीं। प्रारम्भ में यह की भागवत का महात्यम क्या है ? एक बार सनकादिक ऋषि और सूद जी महाराज विराजमान थे तो उन्होंने ये प्रश्न किया की कलियुग के लोगों का कल्याण कैसे होगा ? आप देखिये किसी भी पुराण में किसी और युग के लोगो की चिंता नहीं की पर कलयुग के लोगो के कल्याण की चिंता हर पुराण और वेद में की गई कारण क्या है क्योकि कलयुग का प्राणी अपने कल्याण के मार्ग को भूल कर केवल अपने मन की ही करता है जो उसके मन को भाये वह बस वही कार्य करता है। और फिर कलियुग के मानव की आयु कम है और शास्त्र ज्यादा है तो फिर एक कल्याण का मार्ग बताया भागवत कथा। श्रीमद भागवत कथा सुनने मात्र से ही जीव का कल्याण हो जाता है महाराज श्री ने कहा कि व्यास जी ने जब इस भगवत प्राप्ति का ग्रंथ लिखा, तब भागवत नाम दिया गया। बाद में इसे श्रीमद् भागवत नाम दिया गया। इस श्रीमद् शब्द के पीछे एक बड़ा मर्म छुपा हुआ है श्री यानी जब धन का अहंकार हो जाए तो भागवत सुन लो, अहंकार दूर हो जाएगा। इस सांसारिक जीवन में जो कुछ भी प्राप्त किये हो सब किराए के मकान की तरह है। खाली करना ही पड़ेगा।


धर्मराज जी ने इस संसार का सबसे बड़ा आश्चर्य बताया कि यह मनुष्य अपने ही लोगों को अपने ही हाथों से श्मशान में जलाकर आता है जो कल तक जिंदा था हमारे साथ हंस बोल रहा था बात कर रहा था उसी को श्मशान में जलाकर आता है गजब की बात तो यह है रात को बनते हुए भी देखता है और घर में जब लौट के आता है तो ऐसे जिंदा रहता जैसे यह कभी मरेगा ही नहीं अमर है यही सबसे बड़ा भ्रम है। 

मनुष्य को भगवान ने उत्तम बनाया है और इसके बाद भी हम भगवान के बारे में 1 सेकंड नहीं सोचते हमारा दुर्भाग्य नहीं तो क्या है कि भगवान से युद्ध करना चाहिए भागवत तब तक अच्छी नहीं लग सकती जब तक आपके मन में ईश्वर को जानने की इच्छा ना हो जब तक अपने आप को जानने की इच्छा ना हो जब तक आपके मन में प्रश्न नहीं होगा तब तक आपको भागवत अच्छी नहीं लगेगी अगर भगवान को जानना है भागवत को जानना है खुद को जानना है तभी भागवत तुम को अच्छी लगेगी उससे पहले संभव ही नहीं है। 

सच्चा हिन्दू वही है जो कृष्ण की सुने और उसको माने , गीता की सुनो और उसकी मानों भी , माँ - बाप, गुरु की सुनो तो उनकी मानो भी तो आपके कर्म श्रेष्ठ होंगे और जब कर्म श्रेष्ठ होंगे तो आप को संसार की कोई भी वस्तु कभी दुखी नहीं कर पायेगी। और जब आप को संसार की किसी बात का फर्क पड़ना बंद हो जायेगा तो निश्चित ही आप वैराग्य की और अग्रसर हो जायेगे और तब ईश्वर को पाना सरल हो जायेगा। 

श्रीमद् भागवत कथा के द्वितीय दिवस पर कपिल देवहूती संवाद, सती चरित्र, ध्रुव चरित्र का वृतांत सुनाया जाएगा।